Home OFFBEAT Munawwar Rana Shayari: यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन…, मुनव्वर राना के कुछ चुनिंदा शेर

Munawwar Rana Shayari: यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन…, मुनव्वर राना के कुछ चुनिंदा शेर

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Munawwar Rana Shayari: यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन…, मुनव्वर राना के कुछ चुनिंदा शेर

Munawwar Rana Shayari: उर्दू-हिंदी के फेमस शायर मुनव्वर राना 71 साल की उम्र में इस फानी दुनिया को छोड़ गए. लेकिन उनके लिखी शायरी, ग़ज़ल, नज़्म और कविताएं हर किसी के दिल को छुती रहेंगी. उन्होनें मां और बच्चे के पवित्र रिश्ते, मां का प्रेम और करुणा के एहसास को अपनी कविताओं के जरिये बयां किया है. ना जाने कितनी उम्दा शायरियों को उन्होंने अपने कलम के जरिये कागज पर उकेरा है. आज हम इस मशहूर शायर की याद में उन रचनाएं को पढ़ेंगे जो उनको पढ़ने वालों के दिल में बसीं हुई हैं.

किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई- मुनव्वर राना

ज़रा सी बात है लेकिन हवा को कौन समझाये,
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है

छू नहीें सकती मौत भी आसानी से इसको
यह बच्चा अभी माँ की दुआ ओढ़े हुए है

यूँ तो अब उसको सुझाई नहीं देता लेकिन
माँ अभी तक मेरे चेहरे को पढ़ा करती है

वह कबूतर क्या उड़ा छप्पर अकेला हो गया
माँ के आँखें मूँदते ही घर अकेला हो गया चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना लबों पे उसके कभी बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती 

अब भी चलती है जब आँधी कभी ग़म की ‘राना’
माँ की ममता मुझे बाँहों में छुपा लेती है

गले मिलने को आपस में दुआएँ रोज़ आती हैं
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माँएँ रोज़ आती हैंऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है

मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँलिपट को रोती नहीं है कभी शहीदों से 
ये हौंसला भी हमारे वतन की माँओं में है 

ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सजदे में रहती है

यारों को मसर्रत मेरी दौलत पे है लेकिन
इक माँ है जो बस मेरी ख़ुशी देख के ख़ुश हैतेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फलक़
मुझको अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी

जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है

घेर लेने को जब भी बलाएँ आ गईं
ढाल बनकर माँ की दुआएँ आ गईं‘मुनव्वर’ माँ के आगे यूँ कभी खुलकर नहीं रोना 
जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती 

मुझे तो सच्ची यही एक बात लगती है
कि माँ के साए में रहिए तो रात लगती है

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