Shab E Meraj: कब और क्यों मनाते हैं शब-ए-मेराज? इस्लाम में क्या है इसका महत्व
Shab E Meraj 2023: इस्लाम में शब-ए-मेराज का बेहद खास महत्व है. यह हर साल इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रजब के महीने की 27वीं तारीख को मनाया जाता है. इस हिसाब से ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक आज शब-ए-मेराज की रात है. दरअसल, इस्लाम में ऐसा माना जाता है कि रजब के महीने की 27वीं तारीख को पैगंबर-ए-इस्लाम (अल्लाह के रसूल) हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम और अल्लाह की मुलाकात हुई थी. इसीलिए इस रात को ‘पाक रात’ भी कहा जाता है.
शब-ए-मेराज एक अरबी शब्द है. दरअसल, अरबी में शब का मतलब रात और मेराज का मतलब आसमान होता है. माना जाता है कि इसी रात को हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने सऊदी अरब के शहर मक्का से येरुशलम की बैत अल मुकद्दस मस्जिद तक का सफर तय किया था, और फिर बैत अल मुकद्दस मस्जिद से सातों आसमान की सैर करते हुए उनकी अल्लाह से मुलाकात हुई थी.
क्या है Shab E Meraj का इतिहास ?
इस्लाम में शब-ए-मेराज की घटना को बेहद महत्वपूर्ण और चमत्कारी माना गया है. क्योंकि इसी रात मोहम्मद साहब ने न सिर्फ मक्का से येरुशलम की यात्रा की थी बल्कि फिर सातों आसमानों की यात्रा की. और आखिर में सिदरत-ए-मुंतहा (जहां तक पैगंबर-ए-इस्लाम के अलावा कोई इंसान या अवतार नहीं जा सका) के पास उनकी मुलाकात अल्लाह से हुई. तभी से इस विशेष दिन पर शब-ए-मेराज मनाया जाने लगा.
इस्लाम में शब-ए-मेराज का महत्व
इस्लाम में शब-ए-मेराज की रात की बड़ी फजीलत (खूबी) है. कहा जाता है कि जो इस दिन रोजा रखता है, उसे बड़ा सवाब मिलता है. जो इंसान इस रात अल्लाह की इबादत करता है और कुरान की तिलावत (पढ़ना) करता है, उसे कई रातों की इबादत करने वाले के बराबर सवाब मिलता है. इस रात को खास नमाज़ और नबी पर दूरूद (सलाम) पढ़ा जाता है.