वालिद बनाना चाहते थे इंजीनियर, लेकिन बन गए क्रिकेटर, कहानी सुनकर याद आ जाएगी “थ्री इडियट्स” की
interesting fact of Shahbaz Ahmed life: क्या आपने कभी सोचा है कि असल जिंदगी भी फिल्म थ्री इडियट्स की तरह होती होगी, हम आपको आज ऐसी ही एक कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं. थ्री इडियट्स फिल्म तो आपने देखी ही होगी. फरहान कुरैशी भी याद ही होंगे, अगर याद नहीं हैं तो हम बता देते हैं कि उन्होंने जैसे–तैसे इंजीनियरिंग की थी, लेकिन आखिर में अपने दिल की आवाज सुनी और वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बन गए, अब आप यह सोच रहे होंगे कि हम आपको थ्री इडियट्स की कहानी क्यों सुना रहे हैं? दरअसल, इस कहानी भारतीय टीम के धाकड़ ऑलराउंडर से जुड़ा है, जिसकी जिंदगी थ्री इडियट्स के फरहान कुरैशी से बेहद मिलती–जुलती है. यह कहानी है भारतीय टीम के धाकड़ ऑलराउंडर शाहबाज अहमद की, जिन्होंने अपने पिता की जिद के चलते किसी तरह इंजीनियरिंग कर ली, लेकिन आखिर में अपने दिल की सुनी और क्रिकेटर बन गए.
interesting fact of Shahbaz Ahmed life
धाकड़ ऑलराउंडर के वालिद अहमद जान और वालिदा अबनाम ने शाहबाज के क्रिकेटर बनने के सफर पर इंडियन एक्सप्रेस से बात की, वालिदने कहा, जब शाहबाज क्रिकेट खेलने के लिए कोलकाता जा रहा था, तब मैंने उससे कहा था कि अब जिंदगी में कुछ करके आना, वर्ना वापस मत लौटना. वालिदा ने बताया, शाहबाज ने कुछ बड़ा करने की ठानी थी, यहां तक कि उसके कॉलेज के प्रोफेसर ने भी उससे कहा था कि वो इंजीनियरिंग छोड़कर गलती कर रहा है, क्योंकि वो पढ़ाई में अच्छा था, तब शाहबाज ने अपने हेड ऑफ डिपार्टमेंट से कहा था कि सर एक दिन आप मुझे मेरी डिग्री दोगे और मेरा सत्कार भी करोगे और ऐसा ही हुआ.
वालिद ने दिया शाहबाज को अल्टीमेटम
इसके बाद शाहबाज क्रिकेट खेलने के लिए कोलकाता चला गया, वहां तीन खिलाड़ियों के साथ एक छोटे से कमरे में रहता था, वालिद ने उस दौरे के बारे में बताया, ‘शाहबाज को खाना बनाना नहीं आता था, इसलिए उसका काम बर्तन साफ करना था, उसके लिए कोलकाता में रहना और क्रिकेट खेलना आसान नहीं था, एक तो खाने की दिक्कत थी. दूसरी, उसे हमेशा बाहरी होने का ताना सुनना पड़ता था, उस पर वहां खेलने पर बैन भी लगा दिया गया था, इसलिए उसने वापस आने का सोच लिया था, लेकिन, उसे मेरी कही एक बात याद रही कि कुछ बनकर आना, वर्ना घर मत लौटना.
शाहबाज के दादाजी भी खेलते थे क्रिकेट
शाहबाज (Shahbaz Ahmed) के खून में क्रिकेट उनके दादाजी से आया, अहमद जान के वालिद को भी क्रिकेट का शौक था, मेवात में क्रिकेट के लिए ज्यादा सुविधाएं नहीं थीं, उनका गांव पढ़ाई–लिखाई के लिए जाना जाता है, वहां डॉक्टर–इंजीनियर की संख्या ज्यादा है, यहां तक कि शाहबाज की छोटी बहन फरहीन डॉक्टर हैं और फरीदाबाद के एक अस्पताल में ट्रेनिंग कर रही हैं.
इंजीनियरिंग कॉलेज में नहीं लगता था शाहबाज का मन
वालिद ने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन तो करा दिया, लेकिन शाहबाज का मन पढ़ाई में नहीं लगता था, वे क्रिकेट के लिए क्लास छोड़ देते थे, वालिद को इसकी जानकारी कॉलेज से मिली. इस पर वालिद अहमद जान ने बेटे से बात की, उन्होंने शाहबाज को कहा कि वे क्रिकेट या इंजीनियरिंग में से किसी एक चुने, लेकिन उसी चीज पर मन लगाए, वालिद के कहने के बाद शाहबाज ने क्रिकेट को चुना.
क्रिकेट के लिए बंगाल चले गए
शाहबाज गुड़गांव के एक क्रिकेट एकेडमी में ट्रेनिंग लेने लगे, क्रिकेट के साथ–साथ शाहबाज ने पढ़ाई भी जारी रखी, उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग पूरी की, इसके बाद दोस्त प्रमोद चंदीला के कहने पर बंगाल चले गए. चंदीला वहां एक क्रिकेट क्लब की ओर से खेलते थे. शाहबाज को बंगाल के घरेलू मैचों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद 2018-19 में बंगाल रणजी टीम में चुना गया. इसके बाद 2019-20 में उन्हें इंडिया–ए टीम में चुना गया.