मुगलों के दौर में कैसे मनाया जाता था नया साल, 1 जनवरी को नहीं बल्कि इस दिन मनता था जश्न
आज पूरी दुनिया नए साल के पहले दिन के जश्न में डूबी है. जहां दुनियाभर के लोग इसे अलग-अलग तरीके से अपने अनुसार सेलिब्रेट करते हैं वहीं इस्लामिक काल में नौरोज या नए साल के पहले दिन को सेलिब्रेट करने का तरीका बिल्कुल अलग था. इस जश्न की शुरुआत जहांगीर के शासनकाल से मानी जाती है. तो चलिए आज हम जानते है इस्लामिक शासनकाल में नववर्ष का जश्न कैसे मनाया जाता था.
क्या है नौरोज?
नौरोज या नवरोज ईरानी नववर्ष का नाम है, जिसे फारसी में नया साल भी कहा जाता है. इसे मुख्य रूप से ईरानियों द्वारा सेलिब्रेट किया जाता है. जो प्रकृति के बनने, इसकी खुशी, ताजगी, हरियाली और उत्साह के रूप में दुनियाभर में मनाया जाता है. पूर्व-इस्लामिक काल के दौरान नौरोज उत्सव को औपचारिक रूप से सम्राट अकबर ने सौर वर्ष की शुरुआत के प्रतीक के रूप में अपने ‘दिव्य युग’ यानी तारीख-इलाही में शामिल किया था. इस्लामिक शासनकाल में नए साल का जश्न 21 मार्च 1619 को किया गया था.
जहांगीर ने अपने संस्मरण जहांगीरनामा या तुज़ुक-ए जहांगीरी में लिखा है कि नौरोज पार्टी करने और भव्य उपहारों के आदान-प्रदान का अवसर था. ऐसे में 21 मार्च 1619 को अपने 14वें शासनकाल के पहले दिन जहांगीर ने अपने बेटे शाहजहां द्वारा आयोजित एक मनोरंजन प्रोग्राम में भाग लिया था. जिसमें जहांगीर को हर क्षेत्र से कीमती सामान भेंट किया गया था. जिसमें 1 लाख 56 हजार रुपए के मूल्य के गहने और शाहजहां द्वारा हर क्षेत्र से लाई गई चुनिंदा वस्तुएं शामिल थीं. इसमें कई चीजें ऐसी थीं जो शाहजहां ने खुद डिजाइन की थीं. जैसे तलवार की मूठ, चांदी से बना छोटा सा आर्केस्ट्रा और सुनहरा हाथी हावड़ा.
सर थॉमस रो ने निष्पक्ष रूप से मार्च 1616 में जहांगीर के 11वें शासनकाल की शुरुआत में नौरोज उत्सव का विवरण दिया था. जिसमें उन्होंने सम्राट के सिंहासन के बारे में बताते हुए कहा था कि वो सिंहासन राजघरानों में जिन्होंने नाम रोशन किया है उन राजाओं के चित्रों से घिरा हुआ था.
साभार-abpnews