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Washington Sundar: एक कान से हैं बहरें, गरीबी में बीता बचपन, इस वजह से पड़ा वाशिंगटन नाम

Washington Sundar: वाशिंगटन सुंदर सुर्खियों में हैं. क्राइस्टचर्च के हेगले ओवल में खेले गए भारत और न्यूजीलैंड के बीच तीसरे वनडे मुकाबले में वाशिंगटन सुंदर ने 51 रनों की धमाकेदार पारी खेली. पहले वनडे मुकाबले में भी वाशिंगटन सुंदर का बल्ला गरजा था और उन्होंने 16 गेंदों पर 37 रन बनाए थे. टीम इंडिया के इस खिलाड़ी का जीवन संघर्षों से भरा हुआ रहा है या यूं कह लें कि वाशिंगटन सुंदर अभी भी जूझ रहे हैं.

Washington Sundar Education

वाशिंगटन सुंदर का जन्म 5 अक्टूबर 1999 में तमिलनाडु में हुआ था. उनके पिता का नाम एम सुंदर है. वाशिंगटन की बहन शैलजा सुंदर भी एक पेशेवर क्रिकेटर हैं. उन्हें बचपन से ही क्रिकेट का बहुत शौक था, उन्होंने 5 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट बेड्स एंग्लो इंडियन हायर सेकेंडरी स्कूल, चेन्नई से प्राप्त की.

Washington Sundar's

जन्म से बहरे हैं Washington Sundar

ये बात बहुत कम ही लोग जानते हैं कि वाशिंगटन सुंदर एक कान से बहरे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वाशिंगटन सुंदर जन्म से ही एक कान से बहरे हैं. कहा जाता है कि जब वह चार से पांच साल के थे, तब उनके माता-पिता इस मुद्दे को लेकर डॉक्टर के पास ले गए थे, लेकिन इसे हल करने का कोई तरीका नहीं निकला.

कुछ इस तरह रहा है इंटरनेशनल करियर: कान की समस्या ने उनके हौंसले को प्रभावित नहीं किया है और उन्होंने खेलना जारी रखा. हालांकि, कभी-कभी मैदान पर उन्हें कान की इस समस्या के चलते दिक्कत में देखा गया है. 23 साल के वाशिंगटन सुंदर ने भारत के लिए अब तक 4 टेस्ट, 9 वनडे और 32 टी20 मैच खेले हैं.

Washington Sundar के नाम के पीछे रोचक कहानी

ये यूनीक नाम उन्हें उनके पिता ने दिया था. वाशिंगटन सुंदर के पिता ने एक दोस्त और सलाहकार को श्रद्धांजलि के रूप में अपने बेटे का नाम वाशिंगटन सुंदर रखा. वाशिंगटन सुंदर के पिता ने कहा, ‘ट्रिप्लीकेन में मेरे घर से दो गली दूर पी.डी. वाशिंगटन नाम के पूर्व सैनिक रहते थे. वाशिंगटन को क्रिकेट का अत्यधिक शौक था और वह हमें खेलते हुए देखने आया करते थे. उन्हें मेरा खेल पसंद था.

हदपार गरीबी में बीता है वाशिंगटन सुंदर के पिता का जीवन: वाशिंगटन सुंदर के पिता ने कहा, ‘मैं गरीब था और वो ही वो इंसान थे जो मेरे लिए ड्रेस खरीदते थे. मेरी स्कूल की फीस देते थे, मुझे किताबें दिलवाते थे, मुझे अपनी साइकिल से ले जाते थे और लगातार मुझे प्रोत्साहित करता थे. मैंने उस आदमी की याद में अपने बेटे का नाम वाशिंगटन रखने का फैसला किया जिसने मेरे लिए इतना कुछ किया.’

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