Home ENTERTAINMENT एक साधारण नाई का भाई जब बन गया ‘शहंशाह ऐ तरन्नुम’, फकीर के गाने ने दुकान से पहुंचाया बंबई

एक साधारण नाई का भाई जब बन गया ‘शहंशाह ऐ तरन्नुम’, फकीर के गाने ने दुकान से पहुंचाया बंबई

0
एक साधारण नाई का भाई जब बन गया ‘शहंशाह ऐ तरन्नुम’, फकीर के गाने ने दुकान से पहुंचाया बंबई
आज (24 दिसम्बर) मोहम्मद रफी की 99वीं बर्थी एनिवर्सरी है.

हिंदी सिनेमा में दिग्गज गायकों का जिक्र जब भी होता है तो उसमें सुरों के बेताज बादशाह कहे जाने वाले मोहम्मद रफी का नाम जरूर आता है. मोहम्मद रफी को शंहशाह ए तरन्नुम भी कहा जाता है. मोहम्मद रफी को दुनिया को अलविदा कहे 43 साल हो गए है लेकिन आज भी उनके द्वारा गाए गए गानों को उसी तरह सुना जाता है जैसे बरसो पहले सुना जाता था. मोहम्मद रफी का जन्म आज ही के दिन 24 दिसम्बर 1924 को हुआ था. रफी साहब की बर्थ ऐनीवर्सिरी पर जानते हैं उनके लाहौर में नाई की दुकान से संगीत की दुनिया के किंग बनने तक के सफर के बारे में.

भाई की दुकान से शुरू हुआ मौसिकी का सफ़र

मोहम्मद रफी जब सात साल के थे तभी उनका परिवार रोजगार की तलाश में अंग्रेजों के जमाने में लाहौर आ गया. रफी का जन्म पंजाबी जाट मुस्लिम फैमिली में हुआ था. ऐसे में उनके परिवार का नाच गाने से कोई संबंध नहीं था और पढ़ाई में रफी की कुछ खास दिलचस्पी थी नहीं. छह भाईयों में रफी दूसरे नंबर के थे. उनके बड़ा भाई नाई की दुकान चलता था.

एक रोज उनके पिता ने रफी को भी नाई की दुकान पर काम करने के लिए लगा दिया. वो भी खुशी-खुशी भाई के साथ काम करवाने लगे, लेकिन कहते हैं न किस्मत का लिखा कोई नहीं मिटा सकता. रफी के साथ भी कुछ ऐसा ही था. एक रोज वो अपने भाई की दुकान में काम करवा रहे थे और उस दिन एक फकीर गीत गाता हुआ उनकी दुकान से निकला. रफी उसके पीछे दौड़ पड़े. फिर अक्सर वो फकीर उनकी दुकान से गीत गाता हुआ जाता और रोज रफी उसका गीत सुनने के लिए इंतजार करते.

रफी उस फकीर से प्रेरित होकर गीत गुनगुनाया करते थे. उनकी आवाज में मानो शुरुआत से ही सरस्वती का वास था. गायकी के प्रति अपने छोटे भाई की रुचि देखते हुए रफी के बड़े भाई ने उन्हें उस्ताद अब्दुल वाहिद खान से संगीत की शिक्षा दिलवाई. एक रोज ऑल इंडिया रेडियो के एक कार्यक्रम में कुन्दन लाल सहगल को सुनने के लिए गए. उनके बड़े भाई भी उनके साथ थे. लेकिन जब सहगल अपना गीत सुनाने ही वाले थे उसी समय बिजली गुल हो गई. लिहाजा सहगल ने गाने से इंकार कर दिया. ऐसे में रफी के बड़े भाई ने आयोजकों से लोगों का गुस्सा शांत करवाने के लिए रफी से गाना गवांने की गुजारिश की. आयोजक मान भी गए और इस तरह रफी ने 13 साल की उम्र में अपनी पहली पब्लिक परफार्मेंस दी.

वहीं श्याम सुंदर भी मौजूद थे, जब उन्होंने रफी का गाना सुना तो वो बहुत खुश हुए और उन्होंने रफी को अपने लिए गाने का मौका दिया. मोहम्मद रफी की पहली रिकॉर्डिंग पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए थी और गीत था परदेसी….सोनिए ओ हीरिए. जो उन्होंने 1944 में गाया था. इसके बाद रफी ने साल 1946 में बम्बई आने का फैसला किया. जहां उन्हें जाने माने संगीतकार नौशाद के साथ फिल्म ‘पहले आप’ के लिए गाने का मौका मिला और ये गाना था ‘हिंदुस्तान के हम हैं’. इसके बाद मोहम्मद रफी कभी नहीं रुके और उन्होंने फैंस को उनकी आवाज में कई गाने दिए.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here